यीशु परमेश्वर है

१. जब हम बाइबल पढ़ते हैं, तो हम साफ देखते हैं कि एक ही परमेश्वर है। फिर भी, हम स्पष्ट रूप से तीन व्यक्तियों को देखते हैं जो परमेश्वर हैं - पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा।
१। तीनों व्यक्ति परमेश्वर के गुणों, क्षमताओं के अधिकारी और विशेषताएं प्रदर्शित करते हैं। यह सभी वह सब कुछ कर सकते या करते है जो केवल परमेश्वर ही कर सकता हैI
२. परमेश्वर ऐसा नहीं है जो तीन अलग-अलग लोगों की तरह काम करता है, और न ही वह पीटर, जेम्स और जॉन जैसे तीन अलग-अलग व्यक्ति हैं जो सभी एक साथ काम करते हैं। केवल एक ही परमेश्वर है, लेकिन तीन दिव्य व्यक्ति हैं = यही ट्रिनिटी ''त्रिगुण'' का रहस्य है।
३. "एक परमेश्वर के भीतर तीन दिव्य व्यक्ति '', अर्थात् पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा मौजूद हैं।" (जेम्स आर। व्हाइट)
2. त्रिमूर्ति के सिद्धांत के खिलाफ तर्क देने वालों का कहना है कि यीशु और पवित्र आत्मा परमेश्वर नहीं हैं। वे कहते हैं कि यीशु एक रचित मनुष्य है, और पवित्र आत्मा बस एक बल है।
१. हमने इस प्रश्नन पर विचार करना शुरू कर दिया है: क्या यीशु परमेश्वर है?
२. यह महत्वपूर्ण है कि हमें यीशु के बारे में एक सही समझ हो, क्योंकि बाइबल उसे प्रकट करती है, क्योंकि जैसे-जैसे हम समय के अंत के करीब आ रहे हैं, झूठे मसीह अधिक से अधिक उठ खड़े होंगे। मति २४: ४,५; २३,२४
३. मसीहियत अद्वितीय है। यह यीशु की शिक्षाओं पर ही सिर्फ आधारित नहीं है, यह यीशु के व्यक्तित्व पर आधारित है - वह कौन है, वह क्या है, और उसने क्या किया है। यहुना १६: २७-३०; १७: ८
४. बाइबल इसके बारे में बहुत स्पष्ट है। यीशु था, है, और हमेशा परमेश्वर होगा - शाश्वत (शुरुआत या अंत के बिना) और अनंत (समय या स्थान में सीमित नहीं)।

१. यहुना के सुसमाचार, अन्य तीन सुसमाचारों से अधिक, मसीह की दिव्यता पर जोर देते हैं। यहुना १: १-१८ में हम इस तथ्य को स्पष्ट रूप में पाते हैं कि यीशु परमेश्वर है।
१. वर्ब के लिए दो ग्रीक शब्दों के विपरीत, बाइबल स्पष्ट रूप से दिखाती है कि यीशु की कोई शुरुआत नहीं थी। वह शाश्वत है जिसका अर्थ है वह परमेश्वर है।
२. Was = EN = अतीत में निरंतर क्रिया को व्यक्त करता है (कोई शुरुआती बिंदु नहीं)। Was = EGENETO = एक समय को दर्शाता है जब कुछ अस्तित्व में आया।
३. EN का उपयोग यीशु (शब्द) आयात १ में यीशु के लिए किया गया है। EGENETO का उपयोग बाकी सब (सभी रचित चीजों, यहुना बपतिस्मा देने वाले) आयात ३,६ के लिए किया जाता है।
२. कुछ लोग सोचते हैं कि यीशु परमपिता परमेश्वर से कम है, या वह परमेश्वर द्वारा रचा गया है, क्योंकि उसे परमेश्वर का पुत्र कहा जाता है। पर ऐसा नहीं है!
१. बाइबल के ज़माने में (सन ऑफ़ - "पुत्र") का अर्थ कभी-कभी संतान से होता था, लेकिन इसका मतलब अक्सर "आदेश से" होता है।
२. जब यीशु ने कहा कि वह परमेश्वर का पुत्र है, तो वह कह रहा था कि वह परमेश्वर था, और ठीक यही बात यहूदियों ने भी समझी। यहुना ५:१८; १०: ३०-३३
३. यीशु परमेश्वर का पुत्र नहीं है क्योंकि वह बेतलेहेम में पैदा हुआ था, इसलिए वह कुछ परमेश्वर से कम है या क्योंकि परमेश्वर ने उसे बनाया है इसलिए, यह विचार सही नहीं है, परन्तु वह पुत्र है क्योंकि वह परमेश्वर है। प्रका ३०:४

१. यीशु की शुरुआत बेतलहम से नहीं हुई थी। ट्रिनिटी के दूसरा व्यक्ति, पुत्र, ने स्वर्ग और अनंत काल को छोड़कर मनुष्यता में प्रवेश किया था।
१. उन्होंने केवल एक शरीर ही नहीं, बल्कि एक पूर्ण मानव स्वभाव - जान, आत्मा और शरीर ग्रहण किया।
२. शब्द, का इस्तमाल यीशु, के लिए किया गया है, उसने शरीर ग्रहण किया। यहुना १:१४
३. वर्ब का उपयोग बदलता है। था = EGENETO। निर्धारित समय पर पर, ट्रिनिटी के दुसरे व्यक्ति, परमेश्वर के पुत्र ने मनुष्य शरीर में प्रवेश किया।
२. जब पुत्र ने शरीर ग्रहण किया, तो उसने परमेश्वर होना बंद नहीं किया, और न ही वह मनुष्य में बदल गया।
१. वह एक मानव शरीर में एक परमेश्वर ही नहीं थे। बल्कि वह एक ही समय में पूरी तरह से परमेश्वर और पूरी तरह से मनुष्य थे। I तिमो ३: १६-यही अवतार का रहस्य है।
३. मति १:२३ (यशा ७:१४); इमैनुएल = परमेश्वर-मनुष्यI
३. लोग इस तथ्य पर भ्रमित हो जाते हैं कि यीशु को केवल परमेश्वर का एकमात्र पुत्र कहा जाता है।
वे मानते हैं कि इसका अर्थ है कि वह एक परमेश्वर से निर्मित या कम है। यहुना १: १४,१८
१. हालाँकि, शब्द पलौठा = MONOGENES= अनोखा। (पलौठा=गणनाओ= परमेश्वर की और से)I
२. यीशु अद्वितीय है। वह एकमात्र व्यक्ति हैं जो परमेश्वर के रूप में परमेश्वर के साथ पहले से मौजूद थे। वह एकमात्र व्यक्ति है जिसके जन्म ने उसकी शुरुआत नहीं की। वह एकमात्र परमेश्वर-पुरुष है।
३. यहुना १-केवल पलौठा पुत्र-अधिक शाब्दिक अनुवाद: एकमात्र पुत्र जो परमेश्वर है।
४. जब आप बाइबल पड़ते हो तो पाओगे की यीशु पूर्ण रूप से परमेश्वर और मनुष्य है, और रहेगा,लेकिन आपको यह निर्धारित करना होगा कि क्या आयात यीशु की मानवता या उसकी दिव्यता की बात कर रही है।

१. आयात १-४ – सबसे पहले, संदर्भ पर ध्यान दें। पलूस मसीह के व्यक्तित्व के सिद्धांत पर बात नहीं कह रहा है।
१. वह मसीहियों को सिखा रहा है कि दूसरों की भलाई के लिए खुद को कैसे नम्र बनाया जाए।
२. आयात ५ — इसी दृष्टिकोण, उद्देश्य और [विनम्र] मन को तुम खुद में बनाये रखो जो मसीह यीशु में था। - विनम्रता में खुद को उसकी उदाहरण बनने दें।
२. आयत ६-यीशु इस दुनिया में आने से पहले परमेश्वर के रूप में था।
१. हालांकि, जो अनिवार्य रूप से परमेश्वर के साथ एक है, और परमेश्वर के रूप में [उन गुणों की पूर्णता है जो परमेश्वर को परमेश्वर बनाती हैं] .
२. वह खुद को निम्र और कम करने के लिए तैयार थाI
३. आयात ७- लेकिन खुद को कम किया [सभी विशेषाधिकार और उचित सम्मान] - और उसने एक और रूप, एक दास का का रूप, एक मनुष्य का रूप लिया।
१. वह परमेश्वर ही रहा, उसने परमेश्वर होना नहीं त्यागा। परमेश्वर परमेश्वर होने के लिए संघर्ष नहीं कर सकता। उन्होंने एक और रूप धारण किया - एक दास का, एक मनुष्य का।
२. परमेश्वर ने, एक मनुष्य स्वभाव धारण किया और इस दुनिया में एक मनुष्य के रूप में रहना पसंद किया।
४. जब यीशु ने बिना किसी प्रतिष्ठा के खुद को बनाया (खुद को कुछ नहीं बनाया), उसने तीन काम किए।
१. उसने अपने पूर्ववर्ती महिमा पर पर्दा डाला ताकि वह मनुष्यो के बीच रह सके। यहुना १७: ३;
यहुना १२:४१; यशा ६: १-८; मति १७: १-८; यहुना १८: ६; प्रका १:१७
२. उन्होंने स्वेच्छा से खुद को सीमित कर लिया और पृथ्वी पर रहने के लिए अपनी दिव्य विशेषताओं का उपयोग नहीं किया। परमेश्वर के रूप में, उन्हें धरती की धूल भरी सड़कों पर नहीं चल सकता था, ना थकना था, भूख लगनी थी, आदि, फिर भी उन्होंने किया।
३. पुत्र, परमेश्वर के दूसरे व्यक्ति, ने मनुष्य का रूप धारण करके खुद को दीन बना लिया। उसने खुद को नीचे उतारा। इब्रा २: ९
५. आयात ८-हमें बताती है कि यीशु ने ऐसा क्यों किया। परमेश्वर पुत्र ने शरीर ग्रहण किया ताकि वह हमारे पापों के लिए मर सके। मति २०: २७ ,5; इब्रा २: ९,१४,१५
१. परमेश्वर मर नहीं सकते। यीशु को एक मनुष्य बनना था ताकि वह हमारे पापों का दंड भुगतने के लिए मर सके।
२. यीशु को परमेश्वर होना चाहिए, ताकि उसके बलिदान का मूल्य हमारे पापों के लिए पूरी तरह से कीमत चुकाने में लगे, एक बार हम सभी के लिए।
६. यीशु धरती पर रहते हुए परमेश्वर होना नहीं चाहता था। उन्होंने पूर्ण मानवीय स्वभाव धारण किया, वास्तव में परमेश्वर होते हुए भी वह मनुष्य बन गए।
१. इसलिए वह थक सकता था, भूखा हो सकता था, और पाप करने के लिए ललचाया जा सकता था, आदि। मति ४: १,२;
याकूब १:१३; मत्ती ८:२४; यहुना ४: ६
२. प्रेरितों के काम १०: ३ –- इसीलिए जब यीशु ने सेवकाई शुरू की, तो उसका अभिषेक करने की ज़रूरत थी।
३. फिर भी, यही कारण है कि वह उसी समय खुद को ''यहोवा'' परमेश्वर कह सकते हैं। यहुना ८:५८;
निर्गमन ३:१४); यहुना ३:१३; ८: २४,२८
७. स्पेटुजेंट (हिब्रू पुराने नियम का एक ग्रीक अनुवाद जो मसीह के जन्म से पहले का है) अनुवाद= ''IAM यहोवा '' हैI निर्गमन ३ :१४ मेंI
१. ग्रीक नए नियम में, यीशु स्वयं के लिए इस शब्द का उपयोग करता है और स्वयं को यहोवा कहता हैI
२. जो लोग ट्रिनिटी में विश्वास नहीं करते हैं वे यीशु का सम्मान करते हैं। लेकिन, सुसंगत होने के लिए, वह उन्हें यीशु को कैसे जवाब देंगे? जैसे यहूदियों ने किया - ईश्वर निन्दा (ब्लासफेमी) के लिए यीशु को पत्थर मारे क्युकि उसने खुद को परमेश्वर के बराबर कहा।
९. पवित्रशास्त्र मसीह को पिता के अधीन करने की शिक्षा देता है। यहुना १४:२८
१. हालाँकि, यह अधीनता हमेशा यीशु के संदर्भ में है क्योंकि वह मनुष्य शरीर में था। अधीनता पर आयात में कोई भी मसीह को पूर्ववर्ती करने का संदर्भ नहीं देता है। कोई भी परमेश्वर के पवित्र शब्द का उल्लेख नहीं करता है।
२. ट्रिनिटी के प्रत्येक सदस्य ने मनुष्य की मुक्ति में एक अलग भूमिका निभाई। ट्रिनिटी के दूसरे व्यक्ति ने स्वेच्छा से स्वर्ग छोड़, खुद को विनम्र किया, और पिता को प्रस्तुत करने की भूमिका निभाई।
३. कार्य में अंतर का मतलब प्रकृति में अंतर् होना नहीं है। एक रिश्ते में होने और अधीनता की समानता विरोधाभासी नहीं है। १ करूं ११: ३

१. लूका १: २६-३८ - स्वर्गदूत जबरील मरियम के पास आया और उसे बताया कि वह परमेश्वर के पुत्र को जन्म देने वाली है। कुंवारी गरबवती होगी भविष्वाणीI यशा ७:१४
२. इस बच्चे के लिए स्वर्गदूत ने मरियम को जो नाम दिया वह महत्वपूर्ण है - यीशु।
१. इसका शाब्दिक अर्थ है "यहोवा बचाता है" या "यहोवा से उद्धार है"।
२. मति १: २१ - मूल यूनानी में आयात का अंतिम भाग बताता है, "यही है वह कोई और नहीं जो अपने लोगों को उनके पापों से बचाएगा।"
३. यह अधिक प्रमाण है कि यीशु परमेश्वर है। पुराना नियम, बताता है कि यहोवा एकमात्र उद्धारकर्ता है। यशा ४६: २०-२२; ४३:११; होशे १३: ४
३. आयात ३२ - जबरील ने यीशु के बारे में तीन महत्वपूर्ण बातें कही।
१. वह महान होगा। जब अयोग्य घोषित किया जाता है, तो यह शब्द आमतौर पर परमेश्वर के लिए आरक्षित होता है।
२. वह परमप्रधान का पुत्र होगा। पुत्र = वह जो अपने पिता के गुणों का अधिकारी हो। सेमिटिक विचार में, एक पुत्र अपने पिता की कार्बन कॉपी।
३. उसके पास दाऊद का सिंहासन होगा। यीशु मानव रूप में दाऊद (मति १: १) का प्रत्यक्ष वंशज था, जो परमेश्वर के वादे को पूरा करेगा।
२ शामू ७:१६; भजन ८९: ३,४; २८-३९
४, आयात ३४ - मरियम ने पूछा कि एक आदमी के साथ यौन संबंध के बिना वह कैसे बेटा पैदा कर सकती है।
१. स्वर्गदूत ने समझाया कि पवित्र आत्मा उसमे काम करेगा, जिससे यह संभव होगा।
२. पवित्र आत्मा ने मरियम से एक सेल लिया और इसे शुद्ध किया, जिससे ट्रिनिटी के दूसरे व्यक्ति को एक सच्चे मानव स्वभाव पर ले जाने में सक्षम किया गया। उतपति ३:१५; गल ४: ४
३. परमेश्वर पुत्र ने स्वयं को कम परमेश्वर बनाये बिना मनुष्य रूप ग्रहण किया।
४. मरियम के गर्भ में, दिव्यता और मानवता एक व्यक्ति में, प्रभु यीशु मसीह के साथ उस समय एकजुट हो गए थे।
५. अवतार में हम स्पष्ट रूप से ट्रिनिटी के काम को देखते हैं। तीनों ''त्रिमूर्ति'' व्यक्ति शामिल थे।
१. पवित्र आत्मा की केंद्रीय भूमिका थी और वह दूत थाI लूका १:३५
२. हालाँकि, पिता ने यीशु के लिए एक मनुष्य शरीर तैयार किया। इब्रा १०: ५
३. Preexistent मसीह, ने अपनी मर्जी से, शरीर ग्रहण किया। इब्रा २:१४
६. एक बात है जो हमें यीशु के बारे में स्पष्ट करनी चाहिए। यीशु पूर्ण रूप से मनुष्य था, लेकिन यीशु और हर दूसरे आदमी के बीच एक बड़ा अंतर है। यीशु पापरहित था। लूका १:३५; २ करूं ५:२१; इब्रा ४:१५; इब्रा ९:१४
१. रोम ८: ३ - उसका शरीर पापी नहीं था। उसके पास पापी स्वभाव नहीं था। उनका मनुष्य स्वभाव आदम के पाप करने से पहले जैसा था।
२. पवित्र आत्मा ने मरियम से सेल को शुद्ध किया, जिससे यीशु के लिए एक सच्चा मानव स्वभाव होना संभव था, लेकिन पाप प्रकृति नहीं। लूका १:३५
३. हालाँकि यीशु पूरी तरह से मनुष्य था और प्रलोभन के अधीन था, वह दिव्य भी था, पर उसने पाप नहीं किया।

१. जब हम परमेश्वर के स्वरूप का अध्ययन करते हैं, तो हम उन बातों पर विचार करते हैं जो इस समय हमारी समझ से परे हैं।
१. हम उन्हें स्वीकार कर सकते हैं और उन पर विश्वास कर सकते हैं क्योंकि परमेश्वर ऐसा कहते हैं, और विस्मय और श्रद्धा में उनकी महिमा करते हैं और उनकी उपासना करते हैं।
२. त्रिमूर्ति में हम तीन व्यक्तियों में एक प्रकृति को देखते हैं। एक यीशु में हम एक व्यक्ति और दो (त्रिमूर्ति के) व्यक्तियों को देखते हैं।
३. इस तरह का शिक्षण अप्रासंगिक नहीं है - यह महत्वपूर्ण है।
१. आज पहले से अधिक मसीह के व्यक्तित्व को चुनौती दी जा रही है जैसे पहले कभी नहीं था।
२. यह महत्वपूर्ण है कि आपके पास बाइबल से सटीक जानकारी हो ताकि आप नकली को पहचान सकें।
३. इस तरह का शिक्षण अप्रासंगिक नहीं है - यह महत्वपूर्ण है।
१. यीशु अपने स्तर से नीचे आया ताकि हमे अपने स्तर तक ऊँचा उठा सके।
२. हम अपने भाग्य के बारे में सीख रहे हैं। हमें एक अनंत दायरे में संगति के लिए आमंत्रित किया गया है जिसमें एक अनंत व्यक्ति है जिसने हमें उसके साथ संबंध के लिए चुना है।
३. पिता और पुत्र हमेशा आमने-सामने थे, अनन्त संगति में, और हमारे साथ उस रिश्ते को साझा करने के लिए हमे आमंत्रित किया गया। यहुना १: १; १ करूं १३:१२